विकलांग लोगों को दोहरी उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। अक्सर ही उनकी जरूरतों और अधिकारों की अनदेखी की जाती है।
भारत में विकलांगों की पेशानियों को हम काफी हद तक नजरअंदाज कर जाते हैं, जबकि यह हमारे समाज की बुराई को बढ़ावा देती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में विकलांगों की संख्या एक करोड़ 85 लाख है, जिनमें से 49 लाख 90 हजार बच्चे हैं। ये कुल जनसंख्या का 1.8 प्रतिशत हैं। किंतु राष्ट्र संघ का कहना है कि संभावित रूप से इनकी संख्या 10 करोड़ हो सकती है जो कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत है। विकलांगों में से केवल 2 प्रतिशत को ही शिक्षा और पुनर्वास सेवाओं तक पहुंच हासिल है। अंतर्राष्ट्रीय रूप से सामान्य आबादी की तुलना में विकलांगों के बीच बेरोजगारी तीन गुना है।
ये कुछ चौंकाने वाले तथ्य हैं जिन्हें नजरअंदाज करना मानवता के नाते हमारे सामाजिक दायित्व से मुंह मोड़ने के समान है। पर हम इस सामाजिक दायित्व से मुंह मोड़ लेते हैं, जो एक शिक्षित समाज के लिए दुखद बात है। आज भारत में विकलागंता को दूर करने के लिए सरकार द्वारा कई महत्तवपूर्ण कदम उठाए गए हैं, पर फिर भी क्या कारण है कि इस रोग में कमी होने बजाय बढ़ोतरी हो रही है? अगर हम भारत के प्रदेशों के नज़रिए से देखें तो उत्तर प्रदेश में आज सबसे ज्यादा लोग विकलांग हैं, दूसरे नम्बर पर बिहार और कई राज्य इस श्रेंणी में अपनी पहचान बनाने में आगे हैं। क्या मूल कारण है कि इतने प्रयासों के बावजूद भी भारत इस रोग से छुटकारा नही पा रहा है? भारत की पूरी आबादी आज के समय में विश्व में दूसरे स्थान पर है। यह पूरे विश्व की लगभग 16 प्रतिशत आबादी है और आज हमारा देश दिन-पर-दिन बढ़ती जनसंख्या का शिकार हो रहा है। सरकार के अभियान पूरे देश में एक साथ चलाना एक बहुत बड़ी चुनौती है। हालांकि सरकार के ये प्रयास पूरी तरह विफल नहीं हैं, पर जरूरत है लोगों के जागरूक होने की, ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रयास के प्रति प्रेरणी की।
विकलांग लोगों के लिए समान अवसर और अधिकार सुनिश्चित करने से हमें पीढ़ियों से मौजूद सामाजिक बाधाओं को तोड़ने में मदद मिलेगी। विकलांगता को समाज की मुख्य धारा में शामिल करना विकास प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। विकलांग लोगों को सामाजिक जीवन के हर पहलू में शामिल किया जाना चाहिए।
इन्हीं सिध्दांतों पर स्थापित वल्र्ड विजन (इंडिया) एक मसीही मानवतावादी संगठन है जो निर्धनता और अन्याय के वातावरण में रहने वाले बच्चों, परिवारों और समुदायों के जीवन में एक स्थायी परिवर्तन लाने के लिए कार्य करता है।
‘मुझे मेरे नाम से पुकारो’ प्रकल्प के अंतर्गत वल्र्ड विजन विकलांगों को सामान्य लोगों की तरह ही समाज का एक अहम हिस्सा बनने, मित्र बनाने, जरूरतमंद होने के साथ साथ सहभागी बनने, दर्शक की बजाय जिम्मेदारियां उठाने के लिए प्रेरित करता है। भारतीय संविधान में सुनिच्शित सभी व्यक्तियों को समानता, स्वतंत्रता और सम्मान दिलाने की दिशा में अनेक कदम उठाए हैं।
भारतीय संसद द्वारा पारित ‘विकलांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों की रक्षा तथा पूर्ण प्रतिभागिता) अधिनियम, 1995’ - जो 7 फरवरी, 1966 को लागू हुआ – को सही ढंग से संस्थापित करने में वल्र्ड विजन की अहम भूमिका रही है। यह अधिनियम विकलांग लोगों के अधिकारों की रक्षा और उन्हें सुविधाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था करता है और साथ ही उनके अधिकारों से वंचित होने के मामले में शिकायतों का निवारण करने का प्रावधान देता है। अधिनियम का बल एक ओर विकलांगों की समानता और भागीदारी बढ़ाने पर है तो दूसरी ओर सभी प्रकार के भेदभाव मिटाने पर है।
अधिनियम के मुख्य प्रावधान :-
विकलांगताओं की रोकथाम और शिघ्र पता लगाना
- विकलांगताएं होने के कारण का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण, जांच और शोध कार्य
- विकलांगताओं की रोकथाम के लिए विभिन्न कदम। सहायता के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के कर्मचारियों का प्रशिक्षण
नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार
- हर विकलांग बच्चे को सामान्य या विशेष स्कूलों में 18 वर्ष की आयु तक नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार
- विकलांग बच्चों के लाभ के लिए उपयुक्त परिवहन, इमारतों की बनावट संबंधी बाधाओं को हटाना, पाठ्यचार्य और परिक्षा प्रणाली को संशोधित करना
रोजगार
सरकारी रोजगार में 3 प्रतिशत रिक्त पद विकलांगों के लिए आरक्षित
सकारात्मक कार्रवाई
विकलांग लोगों को सहायक यंत्र और उपकरण उपलब्ध
गैर-भेदभाव
सार्वजनिक भवनों, रेल के डिब्बों, बसों, जलपोतों, वायुयानों के डिजाइन विकलांगों कि लिए प्रयोग में आसान हों
सामाजिक सुरक्षा
- विकलांग लोगों के पुनर्वास के लिए गैर-सरकारी संस्थाओं को वित्तीय सहायता
अधिनियम में विहित अधिकारों के उल्लंघन के मामले में विकलांग लोग निम्नलिखित को आवेदन कर सकते हैं :-
- केंन्द्र में मुख्य विकलांग आयुक्त
- राज्यों में विकलांग आयुक्त
वल्र्ड विजन इन सभी प्रावधानों से विकलांगों को सशक्त करने और फिर इनके लागू होने में कारगर भूमिका निभा रहा है। विकलांगों के प्रमाण पत्र, तिपहिया साइकिल व अन्य वाहन पाने, सड़कों के इस्तेमाल में विकलांगों के साथ भेदभाव रोकने, उन्हें शिक्षा व रोजगार के अवसर मुहैया कराने, सार्वजनिक स्थानों तक पहुंच सुगम बनाने आदि क्षेत्रों में भरसक प्रयास किए हैं।
वल्र्ड विजन के साथ-साथ हमारा भी कर्तव्य यह है कि हम आगे बढ़के विकलांगों के भविष्य के लिए कुछ मजबूत रास्तों का निर्माण करें जिससे ये लोग खुद को समाज से कटा हुआ और अलग हट के महसूस न करें और भारत के विकास में इनके योगदान को भी शामिल किया जा सके।
इस विकलांगता रूपी अभिशाप के मिथक को तोड़ने की कोशिश करनी चाहिए। विकलांगता कोई अभिशाप नहीं है। न तो ये पूर्वजन्मों के पापों की सजा है, न ही आपके परिवार को मिला कोई श्राप। वास्तविकता यह है कि इस दुनिया में कोई भी परिपूर्ण नहीं है, कोई न कोई कमी हर इंसान में होती है। कुछ नज़र आ जाती हैं तो कुछ छुपी रहती हैं। इसी तरह हर इंसान में कुछ न कुछ अलग काबिलियत भी होती है। अपनी कमियों को समझकर उस पर विजय पाना ही विकलांगों की जिंदगी का लक्ष्य होता है। उन्हें बस इस लक्ष्य को पहचानने में मदद चाहिए।
इंसान वही है जो अपनी खूबियों का पलड़ा भारी कर अपनी कमियों को पछाड़ देता है, और दिए हुए संदर्भों में खुद को साबित करता है। पर ये भी सच है कि सामजिक धारणाओं और संकुचित सोच के चलते शारीरिक विकलांगता के शिकार लोगों को समाज में अपनी खुद की समस्याओं के आलावा भी बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। हिम्मत और खुद पे विश्वास कर अगर वो चलें तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। क्योंकि भारत विश्व का सबसे युवा देश है और हम विश्व के सबसे ज्यादा उम्मीद रखने वाले लोगों के देशों में गिने जाने वाले तथ्य को सत्य सिद्ध करने में सक्षम हैं।
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