Monday, July 12, 2010

अनमोल रिश्ते !

मनुष्य धरती के सभी जीव-जंतुओं में से सबसे विकसित प्राणी है। हर काम, हर क्षेत्र में सबसे अधिक सक्षम है। वैसे तो हर मनुष्य अपने आप में पूर्ण होता है, परंतु कहीं न कहीं, जीवन के किसी मोड़ पर उसे अपनों की जरूरत पड़ती है। अपनों का साथ मनुष्य को सहारा, प्यार और जीने का मकसद देता है। कुछ रिश्ते जीवन भर साथ रहते हैं, और कुछ केवल तभी तक साथ रहते हैं जब तक उनका उद्देशय पूरा न हो जाए।


जीवन भर साथ रहने वाले संबंधों की बात करें तो सबसे पहले जहन में आता है माता-पिता के साथ हमारा रिश्ता। सबसे पवित्र, मजबूत, गहरा और प्यार भरा रिश्ता, जो बिना किसी शर्त सारी जिंदगी हमारे पास और हमारे साथ रहता है। जहां मां का प्यार बच्चे को शुरू से ही मानसिक और जज़्बाती तौर पर सहारा दे उसे मजबूत बनाता है, वहीं पिता बच्चे का मार्गदर्शन कर उसे दुनिया से लड़ने और अपनी एक अलग पहचान बनाने की राह पर आगे बढ़ाता है।

पहला रिश्ता जो सहज ही हम सभी के जीवन में स्थापित हो जाता है, वह है माता-पिता का प्यार। उनके दिए संस्कारों को हम हमेशा सहेज कर रखना चाहते हैं, क्योंकि यह एक ऐसी सीख होती है जो जीवन के हर पहलू, हर परिस्थिति में काम आती है। बच्चे अपने माता-पिता के व्यवहार से बहुत प्रभावित होते हैं। सामाज में उठना-बैठना, लोगों से मिलना, बात करना, सब मां-बाप ही तो सिखाते हैं। पिता तो हमेशा से ही बच्चों की प्रेरणा का स्त्रोत रहे हैं। हम में से अधिकांश लोग बचपन से ही अपने पिता को आदर्श मानते आए हैं। कोशिश करते हैं कि उनके जैसे बने, या फिर उनसे भी अच्छा।

पिता से एक अलग ही रिश्ता होता है बच्चों का। बेटा/बेटी अगर उनकी तरह कामयाब बने, तो हर पिता बहुत खुश होते हैं। परंतु दिल से सबसे ज्यादा एक पिता तभी खुश होते हैं, जब उनका बच्चा उनसे भी अधिक कामयाब होकर अपनी एक अलग पहचान बनाए। अपने बच्चों की हर छोटी-छोटी जरूरतों का ध्यान रखने वाले पिता ही तो हैं। जहां मां अपने बच्चों को लेकर अक्सर भावुक रहती हैं, वहीं पिता - ये सोचकर की मां का इतना प्यार कहीं बच्चों को कमजोर या बिगाड़ न दे - बच्चों के साथ सख्ती से पेश आते हैं। मां या बच्चों को चाहे ये बात कितनी ही बुरी लगे, पर पिता की डांट या सख्ती ही हमें अपनी गलतियां सुधारने में मदद करती है और अपनी राह से भटकने नहीं देती। बड़े होने और एक सफल मकाम हासिल करने के बाद यही छोटी-छोटी बातें याद आती हैं और इनकी अहमियत पता चलती है।

मेरा भी अपने पिता के साथ कुछ ऐसा ही रिश्ता है। एकलौती बेटी होने के कारण मैं लाडली तो हूं, पर बिगड़ने की छूट मेरे पिता ने कभी नहीं दी। छुटपन में मेरा स्कूल में एडमिशन कराना हो या 12वीं के बाद कॉलेजों के चक्कर काटने हों, बचपन में गर्मियों की छुट्टियों में मिले प्रॉजेक्ट बनाने हों, या खुद सीए होने के कारण 11वीं में मुझे कॉमर्स लेने का भरोसा दिलाकर, 12वीं तक इस विषय में बिना टयूशन मुझे पढ़ाने की जिम्मेदारी उठाना हो, मेरे पिता ने हमेशा ही मेरा पूरी तरह साथ दिया है। हर काम को आखिरी घड़ी तक छोड़ने की मेरी आदत से वह अक्सर परेशान रहे हैं और, कुछ हद तक, आज भी हैं। परंतु इसके बावजूद ऐन मौके पर, जब मैं बिल्कुल अकेली पड़ जाती, तब भी उन्होंने मेरे काम में मदद की है। सच! ऊपर से चाहे एक पिता कितनी ही कठोरता से पेश आए, परंतु अंदर से उसका मन एक मां की तरह कोमल होता है, जो अपने बच्चे को दुखी देख सहज ही पसीज जाता है।

बिना कहे-सुने, अपने बच्चों की जरूरतों को भी तो एक पिता समझता है। कॉलेज शुरू होते ही मेरे पिता ने स्वयं ही भांप लिया था कि मुझे मोबाइल की जरूरत पड़ेगी। मैं कुछ कहती, इससे पहले ही उन्होंने मुझे मनपसंद फोन दिला दिया! हाल ही में कॉलेज की छुट्टियों के दौरान ट्रेनिंग ढूढ़ने के लिए जगह-जगह अपना सीवी देने मैं पापा के साथ ही गई थी। आज भी आइसक्रीम वाले के पास से गुजरते वक्त मेरे पिता सहज ही मेरा मन पढ़ लेते हैं, और अगले ही पल मैं अपने आप को एक आइसक्रीम का मजा लेते पाती हूं!

सच! बेशकीमती होता है माता-पिता का प्यार, जो शब्दों का मोहताज नहीं होता। भले ही हम हर साल जून के तीसरे रविवार को 'फादर्स डे' मनाते हों, पर माता-पिता का प्यार किसी एक दिन ही नहीं, बल्कि जीवनभर हमारे साथ रहता है। चाहे हम कितने ही बड़े और सफल क्यों न बन जाएं, अपने माता-पिता का सदा आदर करना चाहिए, क्योंकि वह हमेशा अपने बच्चों को हर तरह से सुखी, समृद्ध और सम्पन्न देखना चाहते हैं।

याद रहेगा मुझे...

Internship खत्म होने को है। सोचा नहीं था इतनी जल्दी इतना कुछ सीख लूंगी। पहली बार किताबों से बाहर निकल असल में कुछ सीखा है। एक बहुत ही खास और मददगार अनुभव था, जो जिंदगीभर याद रहेगा और काम आएगा। टीम का इतना सहयोग रहा कि किसी भी चीज को लेकर कोई भी शंका मन में हुई, तो पलभर में गायब हो गई। अपनी प्राथमिकताएं तय करने और हर विषय पर तर्क सहित अपनी स्वतंत्र राय बनाने की अहमियत मैंने यहीं से सीखी है। हिन्दी की टाइपिंग भी यहीं आकर सीखी।
सच! बहुत ही कीमती अनुभव रहा है। मुझे पहला दिन याद है, जब थोड़ी सहमी हुई ऑफिस में आई थी मैं, आने वाले दो महीनों के अनुभव से अज्ञात! स्वभाविक ही था। आखिर पहली बार हर किसी को थोड़ा डर तो लगता ही है। परंतु एक तसल्ली थी कि जो कुछ नया सीखने मैं आई थी, वह जिंदगी भर मेरे साथ रहेगा। आज मेरी यह धारणा सही साबित हो गई।
दिल से एनडीटीवी खबर टीम का धन्यवाद करती हूं। :)

Friday, July 9, 2010

कुछ अपना-सा है...!!

Saturday Morning, hot and humid... slow music... and guess what?

मेरा पहला Blog...!!

This is the first time I have created anything close to a proper blog... The first time I am writing anything close to a post on My Own Blog!! A welcome post. Wow, the feeling is amazing!!
This is something that I can call my own, my reflection, my very own creation that will hopefully grow with me!! The feeling is very special..
I am not a perfectionist in this field. But how does that matter?!! Afterall, I have craeted this blog to learn anything and everything that I can and all of you have to help in this..

Finally I can truly own up for something which is mine!  कुछ अपना-सा है...